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अंधेरा – रहस्यमयी शुरुआत | Horror Suspense Story in Hindi (Part 1)

Horror Suspense Story in Hindi


अंधेरा सिर्फ एक शब्द नहीं होता—कई बार यह अपने भीतर ऐसे राज छिपाए रखता है, जो इंसान की रूह तक जमा देते हैं। यह कहानी भी ऐसे ही एक अंधेरे की है, जिसने एक परिवार की पीढ़ियों को डरा रखा था।

पुरानी कोठी और 1975 का कैलेंडर

आकाश में काले बादलों ने चाँद और तारों को निगल लिया था। बारिश की बूंदें खिड़की से टकराकर अजीब सी आवाजें पैदा कर रही थीं। इसी अंधेरी रात में वैभव अपने दादाजी की कोठी में एक रहस्य की शुरुआत महसूस करने वाला था।

टॉर्च की रोशनी जैसे ही दीवार पर बने पुराने 1975 के कैलेंडर पर पड़ी, उसका मन विचलित हो उठा। यह कोठी उतनी ही पुरानी, रहस्यमयी और डरावनी थी, जितना कि उसके बचपन की कहानियाँ।

मनहूस चीख और बंद कमरा

एक तेज चीख ने सन्नाटे को चीर दिया। आवाज ऊपर की मंजिल से आई थी—ठीक उसी कमरे से, जिसे दादाजी ने हमेशा बंद रखने को कहा था।

“वैभव, उस कमरे में मत जाना… वहाँ अंधेरा रहता है।”

आज वैभव को महसूस हुआ कि शायद दादाजी की चेतावनी कोई साधारण बात नहीं थी।

रहस्यमयी डायरी और ‘अंधेरे की सच्चाई’

कमरे में घुसते ही धूल भरे स्टडी रूम में उसकी नजर पड़ी एक पुरानी चमड़े की डायरी पर। पहले पन्ने पर लिखा था—“अंधेरे की सच्चाई।”

डायरी में अजीब प्रतीक, डरावने नोट्स और एक भयानक बात लिखी थी:

“वह सिर्फ छाया नहीं है। वह जीवित है… वह अंधेरे में सांस लेता है।”

उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई। दादाजी क्या किसी ऐसी शक्ति से लड़ रहे थे, जिसका कोई रूप नहीं, सिर्फ अंधेरा था?

टॉर्च का बुझना और अंधेरे की मौजूदगी

अचानक टॉर्च बुझ गई। कमरे में घनघोर अंधेरा छा गया। हवा बर्फ़ जैसी ठंडी हो गई। उसे महसूस हुआ—कोई उसके पीछे खड़ा है… कोई जो इंसान नहीं था।

जब टॉर्च दोबारा जली, डायरी खुली हुई थी। एक नया पन्ना सामने था—जंगल का नक्शा और एक ‘X’ का निशान

डरावना पैर का निशान

मेज के पास धूल में एक पैर का निशान बना था—लंबा, असामान्य, और उंगलियाँ नुकीली। इंसानी नहीं… बिल्कुल नहीं।

वैभव की रूह काँप उठी। वह भागते हुए नीचे आया, दरवाजा बंद किया और डायरी के पन्ने को देखने लगा। तभी उसने नीचे लाल स्याही जैसी लिखावट देखी:

“तुमने मेरी डायरी छू ली। अब तुम मेरे हो।”

अंधेरे में खड़ी आकृति

खिड़की के बाहर जंगल की ओर देखते ही उसकी सांस अटक गई। एक लंबी, कुरूप, काली आकृति पेड़ों की छाया में खड़ी उसे देख रही थी—बिना चेहरे के, सिर्फ अंधेरा।

यह तो बस शुरुआत है…

अब वैभव को समझ आ चुका था—उसके दादाजी ने जिस ‘अंधेरे’ को छुपाने की कोशिश की थी, वह अब उसके पीछे है। इस रहस्य को सुलझाने के लिए उसे उस ‘X’ वाली जगह तक जाना होगा।

क्या वैभव अंधेरे का सामना कर पाएगा?

(भाग 1 समाप्त – Part 2 जल्द ही)

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