विजयनगर साम्राज्य अपनी समृद्धि, कला और ज्ञान के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। वहाँ के महाराजा कृष्णदेवराय न केवल शक्तिशाली शासक थे, बल्कि अपनी प्रजा के दुख-सुख का सच्चा ध्यान रखने वाले राजा भी थे। उनके भव्य दरबार में अनेक विद्वान, कलाकार और बुद्धिमान मंत्री उपस्थित रहते थे, परंतु उन सबमें सबसे अनोखे, तीक्ष्ण बुद्धि वाले और हाजिरजवाब थे—तेनालीराम।
उनकी चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या आसानी से हल हो जाती थी। आज की कहानी भी ऐसे ही एक अवसर की है, जब तेनालीराम ने पूरे साम्राज्य को एक बड़े भ्रम और लालच से बचाया।
⭐ साधु का आगमन और रहस्यमयी दावा
एक दिन दरबार में एक विचित्र साधु पहुँचा। उसकी लंबी जटाएं, माथे पर भस्म और तेज़ आँखें सभी को चकित कर रही थीं। उसने महाराजा को प्रणाम करते हुए गंभीर स्वर में कहा—
"महाराज! मैंने हिमालय की कठिन कंदराओं में वर्षों तक तपस्या की है। उस तपस्या के बल पर मैं एक ऐसा रहस्य लेकर आया हूँ, जो आपके साम्राज्य को दुनिया का सबसे धनी और शक्तिशाली साम्राज्य बना सकता है!"
दरबार में उत्सुकता फैल गई। महाराजा ने उसे विस्तार से बताने को कहा।
साधु बोला—
"पूर्व दिशा में घने जंगलों के पार एक चमत्कारी पेड़ है—‘इच्छापूर्ति वृक्ष’। उसके नीचे खड़े होकर जो भी इच्छा मांगी जाए, वह तुरंत पूरी हो जाती है। सोना-चांदी, अजेय सेना, अनंत धन—सब कुछ!"
दरबार में कानाफूसी होने लगी। मंत्रियों की आँखें चमक उठीं। सेनापति को अपनी सेना के अजेय होने का खयाल आया। कोषाध्यक्ष ने अनंत खजाने के सपने देखे।
महाराजा भी इस विचार से प्रभावित हुए और तुरंत उस पेड़ को खोजने के लिए एक विशेष टुकड़ी भेजने की घोषणा की।
❗ तेनालीराम की चुप्पी और गहरी सोच
सब उत्साहित थे, पर एक व्यक्ति शांत बैठा था—तेनालीराम।
महाराजा ने पूछा—
"तेनालीराम, तुम इतने उदास क्यों हो? क्या तुम्हें साधु की बात पर विश्वास नहीं?"
तेनालीराम ने विनम्रता से कहा—
"महाराज, मेरा छोटा सा सवाल है—अगर यह साधु ऐसा अद्भुत पेड़ जानता है, तो खुद को समृद्ध क्यों नहीं बना लिया? वह साधारण वस्त्रों में आपके पास क्यों आया?"
साधु गुस्से से तिलमिला उठा। उसने तेनालीराम को अपमानित किया। लेकिन महाराजा ने समझा कि तेनाली किसी महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा कर रहे हैं।
🧠 तेनालीराम की परीक्षा और साधु का पाखंड
तेनालीराम बोले—
"महाराज, एक परीक्षा करें। आज रात हम सभी, साधु महाराज सहित, राजमहल के बगीचे में बरगद के पेड़ के नीचे बैठेंगे और केवल राज्य की भलाई के बारे में सोचेंगे। मन में कोई स्वार्थ नहीं आना चाहिए। जो सफल होगा, वही उस पवित्र पेड़ तक पहुँचने का अधिकारी होगा।"
साधु ने मजबूरी में प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
🌅 अगली सुबह—सच्चाई का खुलासा
अगली सुबह महाराजा ने सभी को बुलाया।
सबसे पहले सेनापति बोले—
"महाराज, मैं असफल रहा। मैं रात भर अपने लिए शक्तिशाली हथियारों की कल्पना करता रहा।"
फिर कोषाध्यक्ष बोले—
"मैं खजाने को बढ़ाने की सोच से मुक्त नहीं हो पाया।"
एक-एक कर सभी दरबारियों ने अपनी असफलता स्वीकार की—even महाराजा ने भी।
अब सबकी निगाह साधु पर थीं।
तेनालीराम मुस्कुराए—
"साधु महाराज अवश्य सफल हुए होंगे। वे निस्वार्थ आत्मा हैं, है ना?"
साधु का चेहरा उतर गया। घबराहट में उसने सच्चाई उगल दी—
"महाराज… मैं तो रात भर बस यही सोचता रहा कि पेड़ मिलने के बाद आप मुझे जो एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देंगे, उससे मैं कितना बड़ा आश्रम बनाऊँगा!"
पूरा दरबार हँसी से गूँज उठा। साधु का ढोंग पकड़ा जा चुका था और उसे दंडित कर दिया गया।
🌟 सच्ची समृद्धि क्या है? तेनालीराम का अद्भुत उत्तर
महाराजा कृष्णदेवराय ने प्रशंसा करते हुए कहा—
"तेनाली, तुमने हमें लालच के अंधेपन से बचा लिया।"
तेनालीराम ने नम्र किंतु दृढ़ आवाज़ में कहा—
"महाराज, सच्चा ‘इच्छापूर्ति वृक्ष’ किसी जंगल में नहीं है। वह हमारे ही राज्य में है—हमारे किसानों की मेहनत में, कारीगरों की कला में, और सैनिकों की बहादुरी में। यही वह पेड़ है जो हमारी हर जरूरत पूरी करता है। जादू हमें समृद्ध नहीं बनाता—मेहनत, निष्ठा और बुद्धिमानी बनाते हैं।"
महाराजा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तेनालीराम को कीमती उपहारों से सम्मानित किया।
🧡 कहानी की सीख – Moral of the Story
- लालच इंसान को भ्रमित कर देता है।
- चमत्कार खोजने से बेहतर अपनी क्षमता पर विश्वास करना है।
- सच्चा धन मेहनत, ईमानदारी और एकता में छुपा है।
- बुद्धिमानी हर स्थिति में विजय दिलाती है।
📌 Conclusion – असली जादू हममें ही है
‘जादुई पेड़ और सच्ची दौलत’ सिर्फ एक मनोरंजक कथा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है।
तेनालीराम हमें सिखाते हैं कि बाहरी जादू पर भरोसा करने से पहले हमें अपने अंदर मौजूद जादू—मेहनत, समझदारी और विवेक—पर विश्वास करना चाहिए।
